दुनिया यह धर्म क्षेत्र है, कोई सैरगाह नहीं।

Bhajan

दुनिया यह धर्म क्षेत्र है, कोई सैरगाह नहीं।
जब तक है प्राण तन में, प्रभु को भुला नहीं।।

किस्मत से है मिला यह चोला मनुष्य का।
जीती हुई यह बाजी है, इसको हरा नहीं।।

बाजी बिछी है काम, क्रोध, लोभ, मोह की।
खेला अगर यह खेल, तो बस फिर फंसा नहीं।।

धन माल जिसपे इस कदर भूला हुआ है तू।
यह तो किसी के आज तक हमराह गया नहीं।।

मम मस्त हो विषयों की मय पीकर तू रात दिन।
सामान सौ  बरस का पल की खबर नहीं।।

तृष्णा  ना यह मिटेगी, ना भोग होंगे कम।
आखिर तू ही मिट जायेगा। तुझ को खबर नहीं।

करना है धर्म कर्म जो कुछ कर ले आज ही।
कल की तो कुछ खबर नहीं होगा कि या नहीं।।